- American Library Association
- American Society for Information Science - Improving access to information since 1937.
- Bethlehem (PA) Area Public Library
- Carnegie Library of Pittsburgh
- Cleveland Public Library
- Georgetown University: Special Collections Division
- Information Technology Laboratory
- Internet Public Library - "Information You Can Trust features a searchable, subject-categorized directory of authoritative websites; links to online texts, newspapers, and magazines; and the Ask an ipl2 Librarian online reference service."
- James Ford Bell Library - Univ. of Minnesota
- Karpeles Manuscript Library
- Kemp Library - East Stroudsburg University
- The John Fitzgerald Kennedy Library
- Librarians' Index to the Internet
- Library of Congress - Home Page
- Library of Congress Classification System
- Library Research Service - Statistics and information on all types of libraries of interest to librarians and library managers.
- LibraryWeb: Columbia University Libraries WWW Information System
- Melvyl Homepage - The World-Wide Web interface for the University of California MELVYL System Catalog (which contains nearly 14 million holdings from 100 UC libraries and other California libraries) is now available for public use.
- Mentor (Ohio) Public Library
- National Library of Australia
- National Library of Canada
- NYPL - Digital Library Collections - online digital image collection includes everything from a retrospective of 19th Century African American Women Writers to video clips of the Louis Armstrong Jazz Oral History Project.
- Ohio Public Library Information Network (OPLIN)
- Rancho Cucamonga Public Library - Virtual Reference Desk
- The Richter Library Web Server, University of Miami
- School Libraries on the Web
- Spokane Public Library
- VIVA: The Virtual Library of Virginia Home Page
- Webrary - Morton Grove (ILL) Public Library - a subject list of websites, arranged according to the Dewey Decimal system Source :http://libraryrulesgov.blogspot.in
Sunday, March 30, 2014
LIBRARY INFORMATION RESOURCES
Thursday, March 27, 2014
केलिबर पोर्टबल (इ-बुक मेनेजमेंट सॉफ्टवेर)
केलिबर,
कोविद गोयल के द्वारा बनाया गया एक फ्री इ-बुक मेनेजमेंट सॉफ्टवेर है,
जिसकी मदद से आप अपनी इलेक्ट्रोनिक पुस्तकों को व्यवस्थित रूप से मेनेज कर
सकते है| इस सॉफ्टवेर की खासियत यह है की इस सॉफ्टवेर में आपको किताबो
का मेटाडाटा डालने की आवश्यकता नहीं होती| यह सॉफ्टवेर सिर्फ आइएसबीएन
नंबर की सहायता से गूगल, अमेजन व् अन्य वेब साइटों से आवश्यक मेटा डाटा
स्वीकार कर लेता है| इस सॉफ्टवेर की मदद से आप अपने डाटाबेस में इकट्ठा
की गई किताबो को अनेक की-वर्ड की मदद से खोज सकते है| इस सॉफ्टवेर की एक
और खासियत यह है की यह सॉफ्टवेर किसी भी फोर्मेट की इ-पुस्तक को किसी भी
इ-रीडर के अनुकूल फोर्मेट में परिवर्तित कर सकता है| वर्तमान में यह अपने
०.८.२२ वर्जन में है|
हाल ही में केलिबर ने अपना पोर्टेबल वर्जन भी जारी किया है जिसकी खूबी यह है की अब आप केलिबर को अपनी किसी भी पोर्टेबल ड्राइव में इंस्टाल कर सकते है जैसे की आपकी यूएसबी पेन ड्राइव, तथा आप अपनी पेन ड्राइव में ही अपनी इ-पुस्तकों का डाटाबेस बना सकते है और किसी भी विंडो (विंडो XP अथवा उससे उपरी) आधारित कंप्यूटर पर उपयोग में लाया जा सकता है|
केलिबर पोर्टेबल के बारे में अधिक जानकारी के लिए अथवा उसे डाउनलोड करने के लिए निम्न लिंक पर क्लीक करे|
http://calibre-ebook.com/download_portable
हाल ही में केलिबर ने अपना पोर्टेबल वर्जन भी जारी किया है जिसकी खूबी यह है की अब आप केलिबर को अपनी किसी भी पोर्टेबल ड्राइव में इंस्टाल कर सकते है जैसे की आपकी यूएसबी पेन ड्राइव, तथा आप अपनी पेन ड्राइव में ही अपनी इ-पुस्तकों का डाटाबेस बना सकते है और किसी भी विंडो (विंडो XP अथवा उससे उपरी) आधारित कंप्यूटर पर उपयोग में लाया जा सकता है|
केलिबर पोर्टेबल के बारे में अधिक जानकारी के लिए अथवा उसे डाउनलोड करने के लिए निम्न लिंक पर क्लीक करे|
http://calibre-ebook.com/download_portable
डिजिटल ऑब्जेक्ट आइडेंटिफायर- डी ओ आईज
१९९०
के दशक के अंत में प्रकाशन-संसार ने सुचना एवं प्रकाशन-संसार में एक नईं
प्रणाली का सूत्रपात किया जिसे डिजिटल ऑब्जेक्ट आइडेंटिफायर (डी ओ आईज)
कहते है ये डी ओ आई वर्ण- आंकिक मालाएं है जो वस्तुओ की एलेक्ट्रानिक
वातावरण में पहचान करती है| डी ओ आई अंको का प्रबंधन अंतर्राष्ट्रीय डीओआई संगठन द्वारा किया जाता है|
ऑनलाइन
विषयवस्तु, जिसे ऑनलाइन डिरेक्टरी के लिए पंजीकृत किया जाता है, के लिए
डी ओ आई विश्व्यापी अनूठा और स्थायी शिनाख्ती चिन्ह है| ये किसी भी प्रकार
की डिजिटल फाइल यथा टेक्स्ट (मूल पाठ), इमेज, द्रश्य, श्रव्य अथवा यहाँ
तक कि सॉफ्टवेयर पर लागु होता है| उदाहरणार्थ, यह एक सम्पूर्ण पुस्तक,
पुस्तक के एक अध्ध्याय, चित्र, एक एक वाकया अथवा शायद पुस्तक कि विषय-सूची
कि पहचान करवा सकता है| यह एक ढंग है जो सृजनात्मक प्रयास कि पहचान
करवाता है और एन विषयों कि विषयवस्तु को अनूठे ढंग से चिन्हित करता है|
इसका लक्ष्य यह है कि वेब पर सूचना इकाईयों को व्यक्तिकता दे दी जाये|
डी
ओ आई को विविध स्थानों पर, जैसे कि निर्देशिकरण पद्धति कि प्रविष्टि में,
डाटाबेसो में, तत्वों को वर्णित करने वाले वेब पेजों पर. वस्तुनिहित
सुचना संरचना में और स्वयं वस्तु में रखा जा सकता है|
इन
पहचान-चिन्हों का कोई स्थायी अर्थ नहीं होता जैसा कि वर्गीकरण कोड में
होता है| वे तो विषयवस्तु के पहचान-चिन्ह होते है और उसका प्रतिरूप भी नहीं
होता| इन पहचानकर्ताओं को डिरेक्टरी में स्टोर किया जाता है जो कोपीराईट
के मालिक का मौजूदा इन्टरनेट पते को भी दिखलाता है और अब इस जानकारी का
ठिकाना वहाँ है| लेखक, प्रकाशक अथवा मौजूदा मालिक का उत्तरदायित्व है कि
उत्तर-पृष्ठ को बनाये रखे जिसमे सुचना मद सम्बन्धी आंकड़े उपलब्ध करवाता है
और इसके प्रयोग सम्बन्धी शर्तों को दर्शाता है|
इन
पहचानकर्ताओं की डिरेक्टरी पूछताछ को इन्टरनेट के पूर्ण किये स्थानों पर
पहूँचा देती है जहाँ विषय की वस्तु को जाना जा सकता है| जब पते बदल जाते
है, तो यह डिरेक्टरी ऐसी पूछताछ को वहाँ भेज देगी जहाँ विषय मौजूदा तौर पर
विद्यमान है|या वहाँ भेज दी जाती है जहाँ यह चिन्हित होता है की उक्त
सूचना कहाँ से प्राप्य है| कुछ समय के बाद, जब वस्तु इधर-उधर जाती है अथवा
उनकी मालिकियत में बदलाब आता है, डिरेक्टरी इन सभी बातों के प्रति सतर्क
रहती है|
यद्यपि
इन पहचानकर्ताओं का मुख्य प्रयोजन बौद्धिक संपदा, इंडेक्सिंग और सुचना
मुहैया करने का प्रबंधन है, इसके साथ साथ डाक्यूमेंट डिलीवरी सेवाओ के लिए
भी यह लाभदायक साधन बनेगा|
डिजिटल, अनालोग एवं हाइब्रिड कंप्यूटर
डिजिटल
युक्ति साधन पृथक परिमाणों को मापती एवं दर्शाती है| अधिकतम घडियां,
उदाहरणतया, प्रकृति से ‘एनालोग’ होती है और उनकी काँटे जो निरंतर अनुक्रम
में उसी प्रकार घूमते है जैसे गतिमापी यन्त्र (Speedometer)
की सुइयां | डिजिटल घडियां, फिर भी, पृथक से संज्याओ को दर्शाती है जो
समय के प्रतीक है| संख्या या तो वहाँ रहती है या यह न भी हो, वें स्वतः
अपने आप उचित स्तिथी पर आवाज करती है| तथ्य तो यह है कि अधिकतम डिजिटल
युक्ति साधनों से पीछे है| उनके घूमने के नियमों (Slide rule) के लिए उनकी औचित्यपूर्ण तुलना कि जा सकती है| यह तुलना एनालोग और जेबी कैलकुलेटर, जो डिजिटल होते है, में कि जा सकती है|
डिजिटल
युक्ति साधन सुचना को ऐकिक रूप यथा पत्रों, प्रतीकों अथवा संख्याओ में
स्वीकार करते है| ये कम्प्युटर प्रयोगकर्ता कि इच्छानुसार किसी भी वस्तु का
प्रतिनिधित्व कर सकते है| सभी गणनाएं और तमाम आगम सामग्री का प्रक्रम
डिजिटल कम्प्युटर पर किया जाता है| इसीलिए, यह सामान्य मंतव्यो के लिए
कम्प्युटर है जो साधारणतया सूचना के प्रक्रम के लिए उपयुक्त है|
‘संमिश्र’ (Hybrid)
कम्प्युटर का विकास एनालोग एवं डिजिटल युक्ति साधन यंत्रो का दोनों के
गुणों का लाभ उठाने के लिए किया गया है| विशिष्टतया, एनालोग कम्प्युटर
भौतिक परिमाणों का माप करेगा जिस में ताप एवं दबाव शामिल है और फिर ये डाटा
डिजिटल कम्प्युटरो के लिए पुनर्प्रचालित हो जाता है| ये डिजिटल कंप्यूटर
अपनी जयादा गति और परिशुद्धि के कारण, डाटा सम्बंधी सांख्यिकी संगणना के
कार्य को सरलता से कर सकते है| फिर आउटपुट को सहज रूप से उन लोगो के लिए
दर्शाया जा सकता है जो उस संक्रिया को करने अथवा उसके मोनिटरिंग में लगे
हुए है|
क्योकि
उन में प्रतीक प्रकलन कि विलक्षण क्षमता होती है इसलिए डिजिटल कम्प्युटर
व्यावहारिक सुचना विज्ञानं में अन्य प्रकार के कंप्युटरों की अपेक्षा
ज्यादा महत्वपूर्ण है| और जब हम कम्प्यूटरो की बात करेंगे, ये डिजिटल
कम्प्यूटरो की ओर ही संकेत होगा|
पुस्तकालय एवं सूचना प्रणाली पर राष्ट्रीय नीति
पुस्तकालय
एवं सूचना नीति का अर्थ देश में सूचना आवश्यकताओ को पूरा एवं सन्तुष करने
हेतु पुस्तकालय एवं सुचना व्यवस्था से सम्बंधित कानूनों एवं नियमों को
लागु करना एवं सूचना का प्रकीर्णन करने हेतु सूचना सेवाओ के प्रोत्साहन
एवं विकास के लिए कार्य करना होता है| इस प्रकार सूचना नीति वह व्यवस्था
है, जिसके द्वारा देश में ग्रंथालय एवं सूचन सेवाओ का उत्तम ढंग से
निर्देशन, संचालन एवं विकास किया जा सकता है|
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सांस्कृतिक विभाग ने सन १९८५ में पुस्तकालय एवं सुचना प्रणाली पर राष्ट्रीय नीति(NAPLIS- National Policy on Library and Information System)
की एक रुपरेखा तैयार कर प्रस्तुत करने के लिए एक समिति गठित की| इस समिति
के अध्यक्ष प्रो. डी. पी. चटोपाध्याय थे| समिति ने इस कार्य को पूर्ण कर
अपनी रिपोर्ट को ड्राफ्ट के रूप में ३१ मई १९८६ को सरकार को प्रस्तुत
किया| जिसमें निम्नलिखित संस्तुतिया की गयी थी|
१. राष्ट्रीय
क्रियाकलापो के सभी क्षेत्रो में सूचना के व्यस्थापन, सुलभता एवं सुप्योग
को सभी उपयूक्त साधनों द्वारा प्रोत्साहित करना, उन्नत बनना और प्रक्षय
प्रदान करना|
२. वर्तमान
पुस्तकालय एवं सुचना प्रणालियों एवं सेवाओ को सक्त्रिया एवं उच्च-स्तरीय
बनाने की दिशा में उपयुक्त कदम उठाना एवं सूचना प्रोद्योगिकी की नवीनतम
उपलब्धियों एवं विकासों का लाभ उठाते हुए राष्ट्रीय सुचा आवश्यकताओ की
पूर्ति के लिए उपयुक्त एवं नविन कार्यक्रमों का आयोजन करना|
३. पुस्तकालय
एवं सूचना कर्मियों के लिए उच्चस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था
करना, साथ ही देश में उच्चस्तरीय विकास और गुणवत्ता की प्राप्ति के लिए
उनकी इन सेवाओ का महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता प्रदान करना|
४. पुस्तकालय
एवं सूचन सुविधाओ एवं सेवाओ के तीव्रगामी विकास हेतु पर्याप्त
निरीक्षणात्मक पद्यति विकसित करना, जिससे सभी क्षेत्रो एवं स्तरों की सूचना
आवश्यकताओ की पूर्ति की जा सके तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया
जा सके|
५. ज्ञान
के संग्रह एवं प्रसार में एक बौद्धिक स्वतंत्रता को वातावरण में नवीन
ज्ञान के अन्वेषण के लिए व्यक्तिगत प्रयासों और प्रक्रियाओ को प्रोत्साहन
प्रदान करना|
६. ज्ञान के संग्रह तथा अर्जन एवं अनुप्रयोग से उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के लाभों को लोगो को लिए सामान रूप से सुलभ करना, तथा
७. राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर तथा उसके बहुआयात्मक स्वरुप का परिरक्षण करना और उससे लोगो को अवगत करना|
इन्टरनेट सर्च इंजिन एवं उसकी कार्य पद्यति
वेब सर्च इंजन एक ऐसा सर्च इंजन (search engine) है जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेज, छवियाँ और अन्य प्रकार की संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ सर्च इंजन हमारे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेस, या खुली निर्देशिका (open directories) में हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका(Web directories) जिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत सर्च इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है.
एक सर्च इंजन, निम्नलिखित आदेश से संचालित होता है
1. वेब crawling (Web crawling)
2. अनुक्रमण (Indexing)
3. खोज रहा है (Searching)
वेब सर्च इंजन कई वेब पन्नों में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कार्य करतें हैं जो अपने डब्लू डब्लू डब्लू से पुनः प्राप्त करतें हैं.ये पन्नें वेब क्रोलर (Web crawler) और के द्वारा प्राप्त हैं (कभी कभी मकड़ी के नाम से जाना जाता है) ; एक स्वचालित वेब ब्राउज़र जो हर कड़ी को देखता है.robots.txt (robots.txt) के प्रयोग से निवारण किया जा सकता है प्रत्येक पन्नों के सामग्री का विश्लेषण से निर्धारित किया जा सकता है कैसे इसे अनुक्रमित (indexed) किया जाए (उदहारणस्वरुप, शीर्षकों, विषयवाचक, या विशेष क्षेत्र जिसे मेटा टैग (meta tags) कहते हैं, से शब्द जुडा होता है)बाद के पूछ ताछ के लिए वेब पन्नों के बारें में आधार सामग्री आंकडासंचय सूचकांक में संगृहीत है कुछ सर्च मशीने जैसे गूगल स्रोत पन्नों के कुछ अंश या पुरा भाग ( केच (cache) के रूप में) और साथ ही साथ वेब पन्नों के बारे में जानकारी स्टोर कर लेता है जबकि अन्य जैसे अल्ताविस्ता (AltaVista) प्रत्येक
पन्नों के प्रत्येक शब्द जो भी पातें हैं उसे संगृहीत कर लेते हैं.यह
संचित पन्ना वास्तविक खोज पाठ को हमेशा पकड़े हुए है जबसे इसको वास्तविक
रूप में सूचीबद्ध किया गया है इसलिए जब वर्तमान पन्ने का अंतर्वस्तु को
अद्यतन करने के बाद और खोज की स्थिति ज्यादा देर तक न होने के बाद यह
अत्यन्त उपयोगी हो सकता है लिंक रूट (linkrot) के इस समस्या को हलके रूप में समझना चाहिए और गूगल के संचालन में इसका इस्तमाल (usability) बढ़ा क्योंकि उसने खोज शब्दों को लौटे हुए वेब पृष्ठों के द्वारा उपयोगकर्ताओं के उम्मीदों (user expectations) को पुरा किया यह विस्मय के कम से कम सिधांत (principle of least astonishment) को
संतुष्ट करती है आमतौर पर उपयोगकर्ता लौटे हुए पन्नों पर खोज के परिणामों
की उम्मीद करता है प्रासंगिक खोज के बढने से संचित पन्ने बहुत उपयोगी हो
जाते हैं, यहाँ तक की वें तथ्यों से बाहर के डाटा हो सकते हैं जो कही भी उपलब्ध नहीं है.
जब कोई उपयोगकर्ता सर्च इंजन में पूछताछ (query) के लिए प्रवेश करता है ( आमतौर पर मुख्य शब्दों (key word) का प्रयोग करके) सर्च मशीन इसके विषय सूचि(index) की परीक्षा करता है और इसके मानदंडों के अनुसार उपयुक्त वेब पन्नों को सूचीबद्ध करता है, सामान्यतः एक छोटी सारांश के साथ जो प्रलेख के शीर्षकों और पाठ के भागों पर आधारित होती है अधिकतर सर्च इंजन बुलियन संचालक (boolean operators) AND, OR and NOT को खोज जिज्ञाशा (search query) शांत करने के लिए समर्थन करतें हैं . कुछ सर्च इंजन उन्नत किस्म के संचालक उपलब्ध कराते हैं जिसे प्रोक्सिमिटी सर्च (proximity search) कहा जाता है जो उपभोक्ता को किवर्ड्स कि दूरियां को परिभाषित करने में सहायता करता है .
सर्च इंजनों के इस्तेमाल को 22 साल हो गए हैं। पहला इंटरनेट सर्च इंजन ‘आर्ची’ था जिसे 1990 में एलन एमटेज नामक छात्र ने विकसित किया था। आर्ची के आगमन के समय ‘विश्व व्यापी वेब’ का नामो-निशान भी नहीं था। चूंकि उस समय वेब पेज जैसी कोई चीज नहीं थी, इसलिए आर्ची एफटीपी सर्वरों में मौजूद सामग्री को इन्डेक्स कर उसकी सूची उपलब्ध कराता था।
‘आर्ची’ इसी नाम वाली प्रसिद्ध कॉमिक स्ट्रिप से कोई संबंध नहीं है। यह नाम अंग्रेजी के ‘आर्काइव’ शब्द से लिया गया था, जिसका अर्थ है क्रमानुसार सहेजी हुई सूचनाएं। आर्ची के बाद मार्क मैककैहिल का ‘गोफर’ (1991), ‘वेरोनिका’ और ‘जगहेड’ आए। 1997 में आया ‘गूगल’ जो सबसे सफल और सबसे विशाल सर्च इंजन माना जाता है। ‘याहू’ ‘बिंग’ (पिछला नाम एमएसएन सर्च), एक्साइट, लाइकोस, अल्टा विस्टा, गो, इंकटोमी आदि सर्च इंजन भी बहुत प्रसिद्ध हैं।
आरएसएस (रियली सिंपल सिंडीकेशन)
आरएसएस अंग्रेजी भाषा के (Really Simple Syndication) का संक्षिप्त रूप है| यह दरअसल वेब पन्नों की फीड के प्रचलित प्रारुपों का एक समूह (फेमिली) है, अर्थात आर एस एस के नाम से कई प्रकार के वेब-फीड प्रचलन में हैं। यह उन जाल पृष्ठों के लिये काम का है जो जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं, मसलन ब्लॉग, समाचार, आदि) । इसके उपयोग से ऐसे वेब पन्नों में होने वाले परिवर्तनों पर स्वचलित तरीके से नज़र रखी जा सकती है।
आरएसएस
के द्वारा उपयोगकर्ता के ब्राउजर या डेस्कटॉप को प्रभावी तरीके से
सामग्री प्रदान करने का एक तरीका है। आरएसएस फीड्स का प्रयोग करके, उपयोगकर्ता किसी भी वेब पेज पर प्रकाशित होने वाले समाचारों के बारे में अद्यतन जानकारी रख सकते हैं।
आज के युग में जहा हजारो वेब साईट उपलब्ध होती है तब उपयोगकर्ता के लिए
अपनी इच्छित सभी वेब साइटों पर प्रकाशित होने वाली सामग्री की जानकारी रखना
अत्यंत मुश्किल होती है| आरएसएस हमें बहुत ही आसानी से सभी वेब पन्नों पर
प्रकाशित होने वाली सामग्री के जानकारी हमारे वेब पन्ने पर ही उपलब्ध
करवा देता है|
आर एस एस फीड को पढने व प्राप्त करने हेतु जो साफ्टवेयर प्रयोग में लाये जाते हैं उन्हें एग्रीगेटर कहा जाता है। एग्रीगेटर को आर एस एस रीडर, न्यूज़ रीडर,फीड रीडर जैसे अन्य अनेक नामों से भी जाना जाता है। एग्रीगेटर
निम्न प्रकार से फीड पढ़ते हैं,
· इन्टरनेट के द्वारा: यदि आपके पास याहू अथवा गूगल की ई –मेल ID है तो आप My yahoo अथवा व्यक्तिगत गूगल में
भी फीड जोड़ सकते हैं । कई वेब ब्राउसर जैसे कि फायर फॉक्स या ओपेरा
वगैरह में न्यूज रीडर प्रोग्राम रहता है और इनमें भी फीड डाउनलोड की जा
सकती है।
· अपने कंप्यूटर पर न्यूस़ रीडर प्रोग्राम को इन्सटॉल करके: इस तरह के प्रोग्रामों में Newsgator, feedreader (केवल विंडोस़ में) (http://www.feedreader.com/) Akregator (केवल लिनक्स में) प्रमुख हैं।
अनुक्रमणिकरण (Indexing)
अनुक्रमणिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान को व्यवस्थित करने हेतु अनुक्रमणिका (Index) एवं
सम्बंधित उपकरणों को तैयार किया जाता है| अनुक्रमणिकरण का कार्य मानव तथा
कंप्यूटर दोनों की सहायता से किया जा सकता है विषय अनुक्रमणिकरण में विषय
के साथ परिचित होना, विश्लेषण और अनुक्रमणिकरण भाषा के उपयोग से अवधारणाओ
को प्रस्तुत करने के लिए पदों को प्रदान करने की तीनों अवस्थाएं सम्मिलित
है| अनुक्रमणिकरण दो प्रकार से किया जा सकता है|
- पूर्व-समन्वित अनुक्रमणिकरण (Pre-coordinated indexing): जव अनुक्रमणिका तैयार करते समय ही अनुक्रमणिकार को पदों में समन्वय स्थापित करना पड़ता है तो यह पद्यति पूर्व-समन्वित अनुक्रमणिकरण कहा जाता है| उदाहरण के लिए: चेन इंडेक्सिंग (Chain Indexing), पोपसी (POPSI), प्रेसिस (PRECIS), क्लासिफाईड इंडेक्सिंग(Classified Indexing) आदि|
- पश्च समन्वित अनुक्रमानिकरण (Post-coordinated indexing): इस पद्यति में विषय शीर्षकों के पदों का क्रम पूर्व निर्धारित नहीं होता है, बल्कि प्रत्येक पद के लिए पृथक प्रविष्टि तैयार की जाती है| इससे उपयोक्ता को उनका क्रम यद् रखने की आवयश्कता नहीं रहती है| उदाहरण के लिए- क्विक (KWIC), क्वोक(KWOC) आदि|
दोनों प्रणालियों में मुख्य अंतर
- पूर्व समन्वित प्रणाली में अनुक्रमणिका तैयार करते समय ही पदों में समन्वय स्थापित किया जाता है जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में पदों का क्रम पूर्व-निर्धारित नहीं होता, बल्कि खोज के समय निर्धारित किया जाता है|
- पूर्व समन्वित प्रणाली में प्रलेखो को खोजने हेतु अभिगम पद अनुक्रमणिकार द्वारा तैयार किया जाता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में अभिगम पद उपयोक्ता स्वयं निर्धारित कर्ता है|
- पूर्व समन्वित प्रणाली में लचीलापन बहुत कम होता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में लचीलापन बहुत अधिक होता है|
- पूर्व समन्वित प्रणाली में क्रमचय (Permutation) एवं संयोजन(Combination) वर्जित होता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में यह वर्जित नहीं है|
Important years of Library science
Madras (Tamil Nadu) Public Library Act (First) 1948
Andhra Pradesh Public Library Act (Second) 1960
Karnataka (Mysore) Public Library Act (Third) 1965
Maharashtra Public Library Act (Fourth) 1967
West Bengal Public Library Act 1979
Manipur Public Library Act 1988
Haryana Public Library Act 1989
Kerala Public Library Act 1989
Goa Public Library Act 1993
Mizorum Public Library Act 1993
Gujrat Public Library Act 2001
Orrissa Public Library Act 2001
Uttar Pradesh Public Library Act 2005
Uttrakhand Public Library Act 2005
Rajasthan Public Library Act 2006
Bihar Public Library Act 2007
Chattisgarh Public Library Act 2007
Pondichery Public Library Act 2007
Arunchal Pradesh Public Library Act 2009
Special Libraries Association 1876
American Library Association (ALA) 1876
Library Association (UK) 1877
Library Association (UK) 1877
Special Libraries Association 1909
Andhra Pradesh Library Association 1914
Association for Special Libraries and Information Buraux (ASLIB) 1924
Association for Special Libraries and Information Buraux (ASLIB) 1926
(IFLA) Founded in Edinburgh, Scotland, in 1927. 1927
Madras Library Association 1928
American Library Association 1929
Bengal Library Association 1929
Indian Library Association 1933
Government of India Libraries Association (GILA) 1933
Indian Library Association (ILA) 1933
Bihar Library Association
Kerala Pradesh Library Association 1942
Bombay Pradesh Library Association 1944
Hyderabad Library Association
Delhi Pradesh Library Association 1953
Indian Association of Special Libraries and Information Centers (IASLIC) 1955
Madhya Pradesh Library Association 1957
Commonwelath Library Association (COMLA) 1972
Dewey Decimal Classification (DDC) 1876
Expansive Classification (EC) 1891
Library of Congress Classification (LC) 1904
1936
1953
Page 1
www.freelis.blogspot.in
Universal Decimal Classification (UDC) 1905
Subject Classification (SC) 1906
Colon Classification (CC) 1933
Bibliographic Classification (BC) 1935
Library Bibliographic Classification (LBK) 1959
International Classification (IC) 1961
Broad System of Ordering (BSO) 1978
British Museum Code 1841
Rules For Dictionary Catalogues 1876
Anglo American Code 1908
Vatican Code 1927
Classified Catalogue Code (CCC) 1934
ALA Code 1949
American Library Association 1949
Anglo American Cataloguing Rules –I 1967
Anglo American Cataloguing Rules –II 1978
Anglo – American Cataloging Rules II 1988
Systematic indexing 1911
Chain Indexing 1934
Uniterm Indexing 1953
Key Word Indexing 1959
PREserved Context Indexing System 1968
Postulate Based Permuted Subject Indexing (POPSI) 1979
Citation Indexing
Subject Indexing
Automated Indexing
SLIC Indexing
Thesaurus Indexing
International Federation for Documentation (FID) 1895
International Federation of Library Association and Institutions (IFLA) 1927
International Council of Scientific Union (ICSU) 1931
University Grand Commission (UGC) 1953
International Atomic Energy Agency (IAEA) 1957
Defenece Research & Development Organization 1958
Documentation Research & Training Center (DRTC) 1962
World Intellectual Property Organization (WIPO) 1967
Bhabha Automic Research Center (BARC) 1967
International Nuclear Information System (INIS) 1969
Agricultural Information System of FAO (AGRIS) 1975
Patent Information System (PIS)
Indian National Scientific Documentation Center (INSDOC) 1952
Defence Science Documentation Center (DESIDOC) 1958
Online Computer Library Centre (OCLC) 1967
Page 2
www.freelis.blogspot.in
National Social Science Documentation Center (NASDOC) 1970
Small Scale Enterprise National Documental Center (SENDOC) 1971
National Information Center (NIC) 1975
National Information Center Network (NICNET) (NIC) 1977
Research Libraries Information Network (RLIN) 1978
Joint Academic Network (JANET) 1984
Education and Research Network (ERNET) 1986
Information And Library Network (INFLIBNET) 1991
Andhra Pradesh Public Library Act (Second) 1960
Karnataka (Mysore) Public Library Act (Third) 1965
Maharashtra Public Library Act (Fourth) 1967
West Bengal Public Library Act 1979
Manipur Public Library Act 1988
Haryana Public Library Act 1989
Kerala Public Library Act 1989
Goa Public Library Act 1993
Mizorum Public Library Act 1993
Gujrat Public Library Act 2001
Orrissa Public Library Act 2001
Uttar Pradesh Public Library Act 2005
Uttrakhand Public Library Act 2005
Rajasthan Public Library Act 2006
Bihar Public Library Act 2007
Chattisgarh Public Library Act 2007
Pondichery Public Library Act 2007
Arunchal Pradesh Public Library Act 2009
Special Libraries Association 1876
American Library Association (ALA) 1876
Library Association (UK) 1877
Library Association (UK) 1877
Special Libraries Association 1909
Andhra Pradesh Library Association 1914
Association for Special Libraries and Information Buraux (ASLIB) 1924
Association for Special Libraries and Information Buraux (ASLIB) 1926
(IFLA) Founded in Edinburgh, Scotland, in 1927. 1927
Madras Library Association 1928
American Library Association 1929
Bengal Library Association 1929
Indian Library Association 1933
Government of India Libraries Association (GILA) 1933
Indian Library Association (ILA) 1933
Bihar Library Association
Kerala Pradesh Library Association 1942
Bombay Pradesh Library Association 1944
Hyderabad Library Association
Delhi Pradesh Library Association 1953
Indian Association of Special Libraries and Information Centers (IASLIC) 1955
Madhya Pradesh Library Association 1957
Commonwelath Library Association (COMLA) 1972
Dewey Decimal Classification (DDC) 1876
Expansive Classification (EC) 1891
Library of Congress Classification (LC) 1904
1936
1953
Page 1
www.freelis.blogspot.in
Universal Decimal Classification (UDC) 1905
Subject Classification (SC) 1906
Colon Classification (CC) 1933
Bibliographic Classification (BC) 1935
Library Bibliographic Classification (LBK) 1959
International Classification (IC) 1961
Broad System of Ordering (BSO) 1978
British Museum Code 1841
Rules For Dictionary Catalogues 1876
Anglo American Code 1908
Vatican Code 1927
Classified Catalogue Code (CCC) 1934
ALA Code 1949
American Library Association 1949
Anglo American Cataloguing Rules –I 1967
Anglo American Cataloguing Rules –II 1978
Anglo – American Cataloging Rules II 1988
Systematic indexing 1911
Chain Indexing 1934
Uniterm Indexing 1953
Key Word Indexing 1959
PREserved Context Indexing System 1968
Postulate Based Permuted Subject Indexing (POPSI) 1979
Citation Indexing
Subject Indexing
Automated Indexing
SLIC Indexing
Thesaurus Indexing
International Federation for Documentation (FID) 1895
International Federation of Library Association and Institutions (IFLA) 1927
International Council of Scientific Union (ICSU) 1931
University Grand Commission (UGC) 1953
International Atomic Energy Agency (IAEA) 1957
Defenece Research & Development Organization 1958
Documentation Research & Training Center (DRTC) 1962
World Intellectual Property Organization (WIPO) 1967
Bhabha Automic Research Center (BARC) 1967
International Nuclear Information System (INIS) 1969
Agricultural Information System of FAO (AGRIS) 1975
Patent Information System (PIS)
Indian National Scientific Documentation Center (INSDOC) 1952
Defence Science Documentation Center (DESIDOC) 1958
Online Computer Library Centre (OCLC) 1967
Page 2
www.freelis.blogspot.in
National Social Science Documentation Center (NASDOC) 1970
Small Scale Enterprise National Documental Center (SENDOC) 1971
National Information Center (NIC) 1975
National Information Center Network (NICNET) (NIC) 1977
Research Libraries Information Network (RLIN) 1978
Joint Academic Network (JANET) 1984
Education and Research Network (ERNET) 1986
Information And Library Network (INFLIBNET) 1991
Friday, March 21, 2014
गूगल की मदद से जानिए अपना इम्पेक्ट फेक्टर एवं एच-इंडेक्स
गूगल ने कुछ समय पहले सीमित लेखकों के लिए उनके प्रशस्ति पत्र मेट्रिक्स एवं उनको नियमित रूप से अपडेट करने के लिए गूगल स्कॉलर उद्धरण
(Google Scholar Citation) के नाम से एक सीमित सेवा शुरू की थी| अब गूगल
की यह सेवा सभी के लिए बिना किसी मूल्य के उपलब्ध है| अब आप आसानी से गूगल
के उद्धरण सेवा का उपयोग करके आपके द्वारा लिखे गए लेखो के उपयोग के बारे
में जान सकते है|
गूगल स्कॉलर उद्धरण कैसे कार्य करता है|
गूगल स्कॉलर उद्धरण
की सहायता से आप इन्टरनेट पर अपने द्वारा लिखे गए लेखो को आसानी से खोज
सकते है एवं संखिय्कीय गणना के आधार पर बनाये गए उनके समूह को चुन सकते है,
तत्पश्चात गूगल स्कॉलर उन लेखो के लिए प्रशंसा पत्रों को एकत्रित करता है एवं समय समय पर उनके ग्राफ एवं प्रशंसा पत्र मिति की, H-सूचकांक (H index) की, i-10 सूचकांक
(i-10 index) जो न्यूनतम १० प्रशंसा पत्रों (Citations) वाले लेखो की
गणना करता है, एवं आपके द्वारा लिखे गए सभी लेखो के प्रशंसा पत्रों की
संख्या की गणना कर्ता है| प्रत्येक मिति की गणना पिछले पांच वर्षों में
प्रकाशित हुए लेखो की प्रशंसा पत्रों एवं कुल प्रशंसा पत्रों के आधार पर
होती है|
जैसे जैसे गूगल स्कॉलर को अन्य लेखो में आपके लेखो के प्रशंसा पत्र (Citations) प्राप्त होंगे वैसे वैसे आपका प्रशंसा पत्र मिति स्व-चालित रूप से अद्यतन होकर आपको प्राप्त हो जायेगी| गूगल स्कॉलर उद्धरण
पर आप अपने लेखो के लिए स्वचालित अद्यतन (update) स्थापित कर सकते है
अथवा आप अद्यतन किये गए लेखो की समीक्षा कर किसी लेख को जोड़ने या हटाने
के लिए सुझाव भी दे सकते है, साथ ही साथ आप मैन्युअली भी अपने लेखो की
सूची में किसी लेख को जोड़ सकते है या उस सूची में सुधार कर सकते है जैसे
की खोये लेखो को जोड़ना, ग्रन्थसूचियों की त्रुटियों को सुधारना, एवं
डुप्लिकेट प्रविष्टियो का विलय करके अपनी प्रोफाइल को अद्यतन करना|
यही
नहीं, आप अपने सहयोगियो, सह-लेखकों एवं अन्य शोधकर्ताओ की प्रोफाइल भी
उनके नाम, उनकी संस्था अथवा उनकी रूचि के आधार पर खोज सकते है| यदि आप अपने
सह-लेखकों को अपनी प्रोफाइल से जोड़ना चाहते है तो आप उनके लिंक को अपनी
प्रोफाइल से जोड़ सकते है और यदि उनकी प्रोफाइल नहीं है तो आप उन्हें
आमंत्रण भेज कर प्रोफाइल बनवा सकते है|
आप
अपनी प्रोफाइल को अपनी इच्छानुसार सार्वजानिक अथवा प्राइवेट बना सकते है|
यदि आप अपनी प्रोफाइल को सार्वजानिक करना चुनते है तो यह गूगल विद्वान
खोज के परिणामों में आपके नाम से खोजे जाने पर प्रकट हो सकता है| यह सेवा
आपके सहयोगियो के लिए आपके द्वारा किये जा रहे कार्यों को जानना आसान बना
देगी|
यह उम्मीद है की गूगल विद्वान उद्धरण दुनियाभर के विद्वानों के लिए उनके एवं उनको सहयोगियो के कार्यों के प्रभाव को देख सकेंगे|
Monday, March 17, 2014
Federated search
Federated
search is an information retrieval technology that allows
the simultaneous search of multiple searchable resources. A user makes a single
query request which is distributed to the search
engines participating in the federation. The federated search then
aggregates the results that are received from the search
engines for presentation to the user. “Federated
Search“. It’s the term used to describe the process of simultaneously
searching multiple search engines or online databases from a single search box.
Federated search is closely related to meta-search. If you’ve ever used dogpile.com, then you’ve experienced
federated/meta-search search. Dogpile is a meta-search engine, meaning that it
gets results from multiple search engines and directories and then presents
them combined to the use. Other meta-search engines you may have heard of
include Clusty, SurfWax, Search.com, Mamma.com, and Ithaki
for Kids.
With traditional
search engines like Google, you will only find pages/sources that have already
been indexed by that engine’s crawler, meaning the millions of documents from
the deep web will not be found. Federated and meta-search is a technique to
resolve this issue and make deep web content searchable and findable. One of
the best aspects of federated search is the single search box. From one search
box, you get to search numerous underlying data sources. This helps the
searcher because he/she does not need knowledge of each individual search
interface or even knowledge of the existence of the individual data sources
being searched. There are hundreds of meta-search and federated search tools
available, in a wide variety of subjects, with new ones appearing all the time.
Case in point: ScienceResearch.com.
ScienceResearch.com provides a single point of access to more than 400
high-quality, publicly searchable science and technology collections.
Purpose
Federated search came about to meet the need of
searching multiple disparate content sources with one query. This allows a user
to search multiple databases at once in real time, arrange the results from the
various databases into a useful form and then present the results to the user.
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